Thursday, January 7, 2010

इडियट्स के बीच में गब्बर सिंह

थ्री इडियट्स देखी। बहुत अच्छी लगी। 1992 में 'जो जीता वही सिकंदर' भी देखी थी। इस फिल्म का सच आज भी छोटे कस्बों, नगरों के मध्यवर्गीय परिवारों के बच्चों का सच है। 'थ्री इडियट्स', 'जो जीता वही सिकंदर' का एक्सटेंशन है। ये फिल्म आज के शहरी, कस्बाई हर युवा का सच है। दिक्कत बस एक ही है। इडियट्स के बीच में गब्बर सिंह आ गया है। बताया जा रहा है कि दस दिन में ही 'थ्री इडियट्स' ने शोले का रिकॉर्ड तोड़ दिया है। ये किस के दिमाग की उपज है, पता नहीं। पहले अखबारों में पढ़ा, फिर टीवी पर देखा-सुना। पहले इस मसखरेपन पर हंसी आई, फिर सिर फोढ़ने का मन हुआ। मन ही मन हंसना एक किस्म की आत्मपीढ़ा का सुख लेने जैसा है। और अपना सिर फोढ़ने को भी स्वांत सुखाय ही समझिए - इससे किसी को फर्क पड़ने से रहा। दोनों ही कामों में नेगेटिव एनर्जी है। इसलिए लगा कि खुद पर इमोश्नल अत्याचार से बेहतर तो लिखना ही है।
'शोले' 1975 में बनीं। अगर ये कहूं कि उस वक्त किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि ऐसी फिल्म बनेगी, तो ये कहना गलत होगा। साहित्य के बाद फिल्मों में ही सबसे ज्यादा एक्सपेरिमेंट हुए हैं। सलीम-जावेद ने भी तो कल्पना ही की थी। उन्होंने हॉलीवुड की काऊ ब्वाय फिल्मों से आइडिया लिया और उसे भारतीय सांचे में ढालने की जादूगरी दिखाई। रमेश सिप्पी ने कहानी पर भरोसा किया और फिल्म बनाई। हां, उन्होंने जरूर कल्पना नहीं की होगी कि 'शोले' इतनी बढ़ी कल्ट हिट होगी। फिल्म हिट या फ्लॉप होने के बाद हर डायरेक्टर दो बातें ही कहता है। पहली, मुझे फिल्म की सफलता पर भरोसा था, लेकिन ये इतनी बढ़ी हिट होगी या सफलता के रिकॉर्ड तोड़ देगी मैंने सोचा भी नहीं था। दूसरा, मैंने बस एक अच्छी फिल्म बनाने की कोशिश की, फिल्म का हिट या फ्लॉप होना तो दर्शक के हाथ में है। या इससे जुड़ी कुछ और बातें, जैसे मैंने अपने समय से आगे की फिल्म बनाई है। फिल्म ने पैसा वसूल लिया है। म्यूजिक राइट्स से ही फिल्म की कीमत निकल गई है। सिनेमाहॉल में दर्शकों का पैसा तो बोनस है...वगैरहा-वगैरहा। मगर हम यहां दूसरे किस्म की फटीचर फिल्मों की बात नहीं कर रहे हैं। हम बात कर रहे हैं कल्ट हिट 'शोले' और इसके रिकॉर्ड तोड़ने का दावा करने वाली फिल्म 'थ्री इडियट्स' की।
'शोले' के 34 साल बाद रिलीज होने वाली फिल्म 'थ्री इडियट्स' के बारे में कहा गया है कि सिर्फ दस दिन में बॉक्स ऑफिस पर इसने करीब 250 करोड़ रुपए कमा लिए। फिल्म ने पहले 'गजनी' का और अब 'शोले' का रिकॉर्ड तोड़ दिया है और अब ये फिल्म सबसे सफल और इसलिए सबसे महान फिल्म बनने जा रही है। इस हास्यापद आंकड़े की पोल हम खोलेंगे, लेकिन पहले ये देखा जाए कि रिलीज होने के कुछ ही दिन के भीतर 'थ्री इडियट्स' को बॉलीवुड की सर्वकालीक महान (या हिट) फिल्मों में शामिल क्यों माना जाए। क्या समय कोई कसौटी नहीं है? वो कसौटी जिसकी अग्निपरिक्षा में शोले हर तरह से खरी उतरी। माफ कीजिएगा, जब पुरी दुनिया में कोई लेखक-डायरेक्टर या प्रोड्यूसर रिलीज होने से पहले ये दावा करने की हिम्मत नहीं दिखा सका कि उसकी फिल्म दुनिया की सबसे बड़ी हिट या हॉलीवुड, बॉलीवुड, टॉलीवुड...और भी न जाने कितने वुडों की सबसे बड़ी हिट साबित होगी, तो इस झूठे विजन के सहारे तथाकथित ट्रेड एनालिस्ट या समीक्षकों की ये घोषणा भी समझ में नहीं आती कि 'थ्री इडियट्स' हिंदी फिल्मी दुनिया की सबसे बड़ी कल्ट हिट होने वाली है।
'थ्री इडियट्स' के पक्ष में सिर्फ इसकी कमाई का आंकडा़ दिया जा रहा है। ये आंकड़ा देते हुए ये नहीं बताया जाता कि इस फिल्म के 1760 सिनेमा हॉल के लिए 1550 प्रिट देश में और विदेशों में 366 सिनेमा हॉल में 342 प्रिंट जारी किए गए। इस फिल्म की जबरदस्त मार्केटिंग की गई। और फिल्म का प्रमोशन अब तक जारी है। जबकि 15 अगस्त 1975 में शोले महज 40 प्रिंट के साथ मुंबई में रिलीज हुई थी। (दूसरे शहरों के आंकड़े नहीं हैं, पर सौ डेढ़ सौ प्रिंट से ज्यादा रिलीज नहीं हुए होंगे) रिलीज होते ही विद्वान समीक्षकों ने इसे फ्लॉप करार दे दिया। 'शोले' मार्केटिंग के बूते नहीं बल्कि वर्ड ऑफ माउथ के बूते चल निकली। इसलिए दस दिन में शोले से तुलना करना बेवकूफी कहा जाएगा। अब 'थ्री इडियट्स' के पहले ही दिन रिलीज हुए ऊपर दिए गए प्रिंट्स की संख्या से तुलना कीजिए। चौंतीस साल बाद भी 'शोले' के 1100 प्रिंट्स सर्कुलेशन में हैं, जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है। इसलिए 'शोले' से तुलना करने से पहले ये कुछ समय ये जानने के लिए जरूर लीजिए कि 'गदर', 'लगान', 'गजनी' की तरह 'थ्री इडियट्स' के कितने प्रिंट्स सर्कुलेशन में रहते हैं। मुझे पूरा विश्वास है कि कुछ समय बाद ये फिल्म टीवी पर दिखेगी। 'शोले' भी दिखी थी। मगर आज भी नगरों, कस्बों, देहातों और कहीं-कहीं शहरों में भी ये फिल्म धड़ल्ले से चल रही है। मगर टीवी पर आने के बाद 'थ्री इडियट्स' भी 'शोले' ही साबित होगी, ये समय ही तय करेगा। महंगाई की दर को एडजस्ट करने के बाद आज के हिसाब से शोले अब तक 7 अरब 68 करोड़ 81 लाख रुपए कमा चुकी है और आगे भी कमाती रहेगी। (साभार- en.wikipedia.org) 'शोले' मुंबई के मिनर्वा थियेटर में पांच साल से ज्यादा समय तक चली। 'शोले' ने पूरे भारत में साठ सिनेमा हॉल्स में गोल्डन जुबली मनाई। 'शोले' हिंदी फिल्म इतिहास की पहली फिल्म है जिसने देश के सौ सिनेमाघरों में सिल्वर जुबली मनाई।
कई लोगों को 'थ्री इडियट्स' मील का पत्थर लगती है। कुछ हद तक है भी। लेकिन हकीकत यही है कि इससे पहले जो जीता वही सिकंदर बनीं और उसके एक्स्टेंशन के तौर पर 'थ्री इडियट्स' बनी। जो ज्यादा समझदारी से आज के युवा की और हमारे समाज की त्रासदी को दिखाती है। संदेश देती है ये कि जो करना या बनना चाहते हो उसमें काबिल बनों, कामयाबी खुद आपके पीछे आएगी। जाहिर है इस बेहतरीन निर्देशन, एक्टिंग के लिए इस फिल्म को कई मान-सम्मान और पुरस्कार मिलेंगे। (और आमिर खान पुरस्कार लेने नहीं जाएंगे) लेकिन तुलना करने से पहले ये भी देखिए कि 'शोले' को बीबीसी ने सदी की सबसे बड़ी फिल्म करार दिया। फिल्मफेयर अवॉर्ड्स में 'शोले' को पिछले पचास साल की सबसे बेहतर फिल्म करार दिया गया। ब्रिटिश फिल्म इंस्टिट्यूट के सर्वे में 'शोले' को हिंदी की टॉप 10 फिल्मों में सर्वोच्च स्थान हासिल हुआ। ये सम्मान भी अपने आपम में एक रिकॉर्ड ही है। ये जरूर है कि 'शोले' के समय पायरेसी की समस्या नहीं थी। 'थ्री इडियट्स' के साथ पायरेसी भी जुड़ी है। लेकिन अब तक 'शोले' के कितनी पायरेटेट सीडी बाजार में आ चुकी होंगी, अगर इसका आंकड़ा मिले तो ये भी संभवत: एक रिकॉर्ड हो सकता है।
'शोले' का हर करेक्टर वेल डिफाइंड है। 'थ्री इडियट्स' का भी है। 'शोले' में किसका किरदार बड़ा है- धर्मेंद्र का, अमिताभ का, संजीव कुमार का, अमजद खान का हेमा मालिनी का या किसी और का। कहना मुश्किल है। इस पर अनंतकाल तक बहस हो सकती है। दूसरी ओर 'थ्री इडियट्स' में किसका किरदार बड़ा है। तो इसमें कहीं कोई बहस नहीं है। आमिर का किरदार ही सबसे बड़ा है। वही फिल्म के शुरू से आखिर तक केंद्र में हैं। 'शोले' शायद बॉलीवुड की पहली फिल्म है जिसके डॉयलॉग्स के कैसेट तक जबरदस्त बिके हैं। लेकिन क्या आपको 'थ्री इडियट्स' में आमिर के ऑल इज वेल के अलावा कोई और डायलॉग फिल्म देखने के कुछ दिन बाद याद आता है। नहीं न। तो फिर दिल पर हाथ रखिए और कहिए- 'शोले' के साथ आज भी ऑल इज वेल है।